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जिन्दगी का तजर्बा

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!!!---: जिन्दगी का तजर्बा :---!!! ============================= www.vaidiksanskrit.com क्या करेगी हवा पुस्तक से प्रस्तुत है एक गजल--- जिन्दगी में पार की है जिसने जितनी खाइयाँ । उसको जीवन में मिली है, उतनी ही उचाइयाँ ।। ये अँधेरा मुझसे रोशन हो रहा है इसलिए । उसकी यादों की हैं मेरे साथ में परछाइयाँ ।। तजर्बा हमको जमाने का बताता है यही । चाहे कुछ पा लो मिलेंगी अन्त में तन्हाइयाँ ।। पत्थरों के शहर में जब जिन्दगी पत्थर हुई । याद तब आई बहुत ही गाँव की अमराइयाँ ।। दूर होके उससे केवल मैं नहीं हूँ गमजदा । मेरे बिन उसके जीवन में है फकत रुसवाइयाँ ।। खारा जल है पास में सागर के, तो मोती भी है । हर बुरे में भी मिलेंगी कुछ-न-कुछ अच्छाइयाँ ।। डॉ. प्रवीण शुक्ल www.facebook.com/kavipraveenshukla ===========================   हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक संस्कृत www.facebook.com/vaidiksanskrit www.facebook.com/vedisanskrit (2.) लौकिक संस्कृत www.facebook.com/laukiksanskrit (3.) ज्ञानोदय www.facebook.com/jnanodaya (4.) शिशु-संस्कृतम् www.f...

।। निस्पृह साहित्यकार ।।

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करीब सात दशक पूर्व रामगढ के राजा स्वर्गीय चन्द्रधरसिंह के मन में यह उमंग उठी कि हिन्दी के श्रेष्ठ आलोचक, कवि, कहानीकार को मैं नियमित आर्थिक सहायता देकर साहित्य-सेवा में अपना योगदान दूँ । आलोचकों में श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी, कहानीकारों में मुंशी प्रेमचन्द और कवियों में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का चयन किया गया । स्वीकृति के लिए पत्र गए । पत्र का उत्तर देते हुए प्रेमचन्द ने तो शिष्टतापूर्ण पत्र लिखा कि उन्हें इस प्रकार के बन्धन से मुक्त रखा जाए । निराला के पास राजा साहब के सुहृद् दो-तीन सज्जन वह पत्र लेकर गए । उस समय वे पत्र हाथ में लेकर उनसे इधर-उधर की बातें करने लगे । इस बीच में जो पत्र उनके हाथ में था, खेल-खेल में उसके टुकडे-टुकडे और तोड-मरोड करते रहे । जब वे सज्जन विदा होने लगे तो उक्त पत्र का जवाब माँगा । तब जैसे सोते से जागकर निराला जी ने कहा---"अरे, यह पत्र तो अब टुकडे-टुकडे हो गया । बस, यही जवाब आप मेरी ओर से राजा साहब को पहुँचा दीजियेगा ।" महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने उसका कोई जवाब ही नहीं लिखा । जान-बुझकर वे देर करते रहे , जिससे राजा साहब ...