जिन्दगी का तजर्बा

!!!---: जिन्दगी का तजर्बा :---!!! ============================= www.vaidiksanskrit.com क्या करेगी हवा पुस्तक से प्रस्तुत है एक गजल--- जिन्दगी में पार की है जिसने जितनी खाइयाँ । उसको जीवन में मिली है, उतनी ही उचाइयाँ ।। ये अँधेरा मुझसे रोशन हो रहा है इसलिए । उसकी यादों की हैं मेरे साथ में परछाइयाँ ।। तजर्बा हमको जमाने का बताता है यही । चाहे कुछ पा लो मिलेंगी अन्त में तन्हाइयाँ ।। पत्थरों के शहर में जब जिन्दगी पत्थर हुई । याद तब आई बहुत ही गाँव की अमराइयाँ ।। दूर होके उससे केवल मैं नहीं हूँ गमजदा । मेरे बिन उसके जीवन में है फकत रुसवाइयाँ ।। खारा जल है पास में सागर के, तो मोती भी है । हर बुरे में भी मिलेंगी कुछ-न-कुछ अच्छाइयाँ ।। डॉ. प्रवीण शुक्ल www.facebook.com/kavipraveenshukla =========================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक संस्कृत www.facebook.com/vaidiksanskrit www.facebook.com/vedisanskrit (2.) लौकिक संस्कृत www.facebook.com/laukiksanskrit (3.) ज्ञानोदय www.facebook.com/jnanodaya (4.) शिशु-संस्कृतम् www.f...