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अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सूक्ति-सुधा

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!!!---: सूक्ति-सुधा :---!! ================================== मणिना वलयं वलयेन मणिः मणिना वलयेन विभाति करः । कविना च विभुर्विभुना च कविः कविना विभुना च विभाति सभा ।। पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः । मणिना वलयं वलयेन मणिः मणिना वलयेन विभाति करः ।। शशिना च निशा निशया च शशि शशिना निशया च विभाति नभः । सभया च भवान् भवता च सभा सभया भवता च विभाति जगत् ।। =============================== www.vaidiksanskrit.com =========================== www.vaidiksanskrit.com =============================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/vaidiksanskrit (2.) वैदिक साहित्य संस्कृत में www.facebook.com/vedisanskrit (3.) लौकिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/laukiksanskrit (4.) लौकिक साहित्य संस्कृत में www.facebook.com/girvanvani (5.) संस्कृत सीखिए-- www.facebook.com/shishusanskritam (6.) चाणक्य नीति www.facebook.com/chaanakyaneeti (7.) संस्कृत-हिन्दी में कथा www.facebook.com/kathamanzari (8.) संस्कृत...

मनुष्य और भय

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!!!---: मनुष्य और भय :---!!! ========================= "तावद् भयाद्धि भेतव्यं यावद् भयमनागतम् । आगतं तु भयं दृष्ट्वा नरः कुर्याद् यथोचितम् ।।" अर्थः---तभी तक भय से डरना चाहिए, जब तक कि भय आ न जाए । जब भय आ जाए तब उससे बचने का उपाय करना चाहिए । =============================== www.vaidiksanskrit.com =========================== www.vaidiksanskrit.com =============================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/vaidiksanskrit (2.) वैदिक साहित्य संस्कृत में www.facebook.com/vedisanskrit (3.) लौकिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/laukiksanskrit (4.) लौकिक साहित्य संस्कृत में www.facebook.com/girvanvani (5.) संस्कृत सीखिए-- www.facebook.com/shishusanskritam (6.) चाणक्य नीति www.facebook.com/chaanakyaneeti (7.) संस्कृत-हिन्दी में कथा www.facebook.com/kathamanzari (8.) संस्कृत-हिन्दी में काव्य www.facebook.com/kavyanzali (9.) आयुर्वेद और उपचार www.facebook.com/gyankisima (10.) भारत की विशेषताएँ-...

इंसानियत का तकाजा

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!!!---: इंसानियत का तकाजा :---!!! ================================== भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी के निर्माताओं में गिने जाते हैं । उनका सम्बन्ध बनारस के एक समृद्ध परिवार से था, परन्तु वह अपनी दानशीलता के कारण परिस्थितिवश एक समय सर्वथा धनहीन होगे । उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि मित्रों की डाक में आई चिट्ठियों का जवाब देने के लिए भेजे जाने वाले लिफाफों और पत्रों पर लगाने के लिए पैसे भी नहीं रह गए थे । वह डाक में आई चिट्ठियों का उत्तर लिखकर सादे लिफाफों में रखते जा रहे थे और उन पर पते लिखकर एक ढेर में रखते जाते थे । एक दिन उनसे मिलने के लिए एक मित्र आए । उन्होंने मेज पर भारतेन्दु के नाम आई चिट्ठियाँ तथा दूसरी ओर पते-लिखे सादे लिफाफों में उनके उत्तर देखे । वह सारी परिस्थिति भाँप गए । उन्होंने अपने नौकर को पाँच रुपए देकर उसके डाक-टिकट मँगवाए और उन लिफाफों पर टिकट लगवाकर उन्हें डाक में डलवा दिए । इसके कुछ दिनों के बाद उनकी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक गई । इसके बाद उक्त मित्र जब भी भारतेन्दु से मिलने आते, भारतेन्दु उनकी जेब में पाँच रुपए का एक नोट जबरदस्ती...