इंसानियत का तकाजा
!!!---: इंसानियत का तकाजा :---!!!
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी के निर्माताओं में गिने जाते हैं । उनका सम्बन्ध बनारस के एक समृद्ध परिवार से था, परन्तु वह अपनी दानशीलता के कारण परिस्थितिवश एक समय सर्वथा धनहीन होगे ।
उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि मित्रों की डाक में आई चिट्ठियों का जवाब देने के लिए भेजे जाने वाले लिफाफों और पत्रों पर लगाने के लिए पैसे भी नहीं रह गए थे । वह डाक में आई चिट्ठियों का उत्तर लिखकर सादे लिफाफों में रखते जा रहे थे और उन पर पते लिखकर एक ढेर में रखते जाते थे ।
एक दिन उनसे मिलने के लिए एक मित्र आए । उन्होंने मेज पर भारतेन्दु के नाम आई चिट्ठियाँ तथा दूसरी ओर पते-लिखे सादे लिफाफों में उनके उत्तर देखे । वह सारी परिस्थिति भाँप गए । उन्होंने अपने नौकर को पाँच रुपए देकर उसके डाक-टिकट मँगवाए और उन लिफाफों पर टिकट लगवाकर उन्हें डाक में डलवा दिए ।
इसके कुछ दिनों के बाद उनकी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक गई । इसके बाद उक्त मित्र जब भी भारतेन्दु से मिलने आते, भारतेन्दु उनकी जेब में पाँच रुपए का एक नोट जबरदस्ती डाल देते थे । इस पर उस मित्र ने उन्हें उलाहना देते हुए कहते, "इसका अर्थ यह हुआ कि मैं तुमसे मिलने न आया करुँ ।"
तुमने ऐसे संकट के समय मुझे वे पाँच रुपए दिए थे कि मैं उसका बदला नहीं चुका सकता । मैं हर रोज भी पाँच रुपए तुम्हें लौटाऊँ तब भी इंसानियत का यही तकाजा और यही और यहीं माँग होगी कि तुम्हारे पर तुम्हारे मित्र का तकाजा बचा हुआ है ।"
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हँसकर अपने मित्र को जवाब दिया ।
संक्षिप्त परिचयः----
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है।
जन्म: 9 सितंबर 1850, वाराणसी
मृत्यु: 6 जनवरी 1885, वाराणसी
अभिभावक: गोपाल चंद्र
पुस्तकें: अंधेर नगरी चौपट राजा, Durlabh-Bandhu, अधिक
नाटक: अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा
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