संदेश

जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्षमा उत्तम आभूषण है ।

चित्र
!!!---: सूक्ति-सुधा :---!!! ====================== "नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः । गुणस्याभरणं ज्ञानं रज्ञानस्याभरणं क्षमा ।।" अर्थः---मनुष्य का आभूषण (गहना) उसका रूप है । रूप का आभूषण गुण है । गुण का आभूषण ज्ञान है । ज्ञान का आभूषण क्षमा है । जिस व्यक्ति के पास ज्ञान की पूर्णता होती है, उसके पास विनम्रता अवश्यमेव होती है, यदि ज्ञानी के पास विनम्रता न हो तो समझ लें कि वह ज्ञानी नहीं है---"विद्या ददाति विनयम् ।" विनयशील और ज्ञानी व्यक्ति ही क्षमा का अधिकारी भी होता है । उसके लिए क्षमा करना उसके ज्ञानव की पराकाष्ठा है । संसार में बार-बार यही देखा गया है कि ज्ञानी को ज्ञान का घमण्ड बहुत होता है, इस कारण थोडी-सी भी गलती को बढा-चढा कर बोलता है तो ऐसे व्यक्ति को ज्ञानी नहीं समझा जा सकता है । ऐसे व्यक्ति के पास केवल ठूँठ ज्ञान ही है, रटी हुई विद्या है, जबकि ज्ञान से अभिप्राय है कि ज्ञान को जीवन में , व्यवहार में उतार लिया जाए । ============================== www.vaidiksanskrit.com ==============================...

सूक्त-सुधा

चित्र
!!!---: सूक्त-सुधा :---!!! ====================== "यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता । एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ।।" (हितोपदेशः--10) अर्थः----जवानी, धनसम्पत्ति, स्वामित्व और मूढता (मूर्खता) इन चारों में से एक-एक गुण भी व्यक्ति व समाज को आतंकित करने में , नष्ट करने में या समाप्त करने में समर्थ है, शक्तिशाली है । यदि ये चारों मिलकर एक साथ एक ही व्यक्ति के पास हो तो उसके सर्वनाश होने में कोई सन्देह या शक नहीं । अन्वयः---यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वम् अविवेकिता (इत्येतेषु) एकैकम् अपि अनर्थाय (अलं भवति चेत्) यत्र चतुष्टयम् (अस्ति, तत्र) किमु (वक्तव्यम्) । सन्धिः---अपि-अनर्थाय--अप्यनर्थाय (इको यणचि) समासः---धनस्य सम्पत्तिरिति धनसम्पत्तिः---षष्ठीतत्पुरुषः न अर्थः---इत्यनर्थः, तस्मै अनर्थाय नञ् तत्पुरुषः । ============================== www.vaidiksanskrit.com =============================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/vaidiksanskrit (2.) वैदिक साहित्य और छन्द www...

सूक्ति-सुधा

चित्र
!!!---: सूक्ति-सुधा :---!!! ======================== शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे । साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ।। (हितोपदेश) अर्थः---- हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते साधु सर्वत्र नहीं होते , हर एक वन में चंदन नहीं होता । उसी प्रकार दुनिया में भली चीजें प्रचुर मात्रा में सभी जगह नहीं मिलती । ============================== www.vaidiksanskrit.com =============================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/vaidiksanskrit (2.) वैदिक साहित्य और छन्द www.facebook.com/vedisanskrit (3.) लौकिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/laukiksanskrit (4.) संस्कृत निबन्ध www.facebook.com/girvanvani (5.) संस्कृत सीखिए-- www.facebook.com/shishusanskritam (6.) चाणक्य नीति www.facebook.com/chaanakyaneeti (7.) संस्कृत-हिन्दी में कथा www.facebook.com/kathamanzari (8.) संस्कृत-काव्य www.facebook.com/kavyanzali (9.) आयुर्वेद और उपचार www.facebook.com/gyankisima (10.) ...

चार प्रकार की नीतियाँ

चित्र
!!!---: चार नीतियाँ :---!!! ====================== "उत्तमं प्रणिपातेन शूरं भेदेन योजयेत् । नीचमल्पप्रदानेन समशक्तिं पराक्रमेण ॥" (पञ्चतन्त्र) यदि शत्रु इनमें से किसी भी प्रकार का हो तो उसे हराने का तरीका ये हैंः--- अर्थः---- (1.) अपने से श्रेष्ठ के सामने झुक जाना चाहिए । विनम्र बन जाना चाहिए । श्रेष्ठ व्य़क्ति को विनम्रता से ही हराया जा सकता है । (2.) शक्तिशाली व्यक्ति (शूरवीर) को भेदनीति से अर्थात् उनके बीच में वैमनस्य पैदा करके, उनको आपस में तोड कर या डरा कर जीत लेना चाहिए । (3.) नीच या लोभी व्यक्ति को कुछ लोभ देकर उसकी जरुरत के अनुसार उसे जीत लेना चाहिए । (4.) समान शक्ति वाले को, जो अपने बराबर का हो तो उसे अपनी शक्ति से, ताकत से, पराक्रम से जीत लेना चाहिए । ============================== www.vaidiksanskrit.com =============================== हमारे सहयोगी पृष्ठः-- (1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में www.facebook.com/vaidiksanskrit (2.) वैदिक साहित्य और छन्द www.facebook.com/vedisanskrit (3.) लौकिक साहित्य ह...