पण्डित के लक्षण

!!!---: पण्डित के लक्षण :---!!! ==================== जब धृतराष्ट्र ने राजकाज दुर्योधन को सौंप दिया , तब महात्मा विदुर ने इसका विरोध किया । इसी प्रसंग में उन्होंने दुष्ट और पण्डित के लक्षण बताएँ हैं । यहाँ पण्डित से अभिप्राय विद्वान् व सज्जन व्यक्ति है । जातिगत शब्द कतई नहीं । जिनके अन्दर ये लक्षण पाए जाते हैं, वही "पण्डित" है । पण्डित का व्याकरण में अर्थ है--"पण्डा अस्य अस्ति इति पण्डितः ।" "पण्डा" बुद्धि को कहा जाता है । यह प्रसंग महाभारत के "उद्योग पर्व" से उद्धृत है । इसे "विदुर प्रजागर" भी कहा जाता है । इसकी संख्या है---३३.१६ "निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते । अनास्तिकः श्रद्दधानः एतत् पण्डित लक्षणम् ।।" १६ ।। अर्थः---पण्डित या प्राज्ञ वह है जो जीवन में प्रशस्त लक्ष्य को चुनता है, निन्दा योग्य कर्मों में नहीं पडता है । उसके कर्मों में श्रद्धा होती है और वह ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता है । "क्रोधो हरर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता । यमर्थान्नापकर्षन्ति...