नष्ट करने वाले पदार्थ

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"जरारूपं हरति हि धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया ।
क्रोधः श्रियं शीलमनार्यं सेवा ह्रियं कामः सर्वमेवाभिमानः ।।"
(महाभारत--उद्योगपर्व--३५.५०)

अर्थः----
बुढापा रूप को,
आशा धैर्य को,
मृत्यु प्राणों को,
ईर्ष्या धर्म को,
क्रोध बडप्पन (श्रेष्ठता) को,
नीच पुरुष की सेवा चरित्र को,
कामवासना लज्जा को
और
अभिमान सर्वस्व को नष्ट कर देता है ।
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