विद्वान् पुत्र

माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ।।

वह माता अपनी संतान के लिए शत्रु है और पिता बैरी है, जिसने अपने बालक को नहीं पढ़ाया । वह बालक विद्वानों की सभा में उसी प्रकार से सुशोभित नहीं होता, जिस प्रकार से हंसों के बीच में बगुला सुशोभित नहीं होता ।


"पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सन्ततं बुधैः।
नीतिज्ञा शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः।।"

बुद्धिमान् व्यक्ति अपने बच्चों को विभिन्न प्रकार के चरित्र के कामों में लगने की प्रेरणा देते हैं क्यों श्रद्धावान, चरित्रवान तथा नीतिज्ञ पुरुष ही विश्व में पूजे जाते हैं।

( अर्थशास्त्रम् चाणक्य कृत)

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