घर
भूल जाते हैं, हम घर का रास्ता
भूलते जाते हैं हम
घर का रास्ता रोज-रोज
साल-दर-साल आगे
बढते हुए उस सबकी तलाश में
जो नहीं मिला हमें घर में

घर एक स्मृति बनकर आता है
पानी में डूबे हुए जहाज की तरह
हिलती है घर की स्मृति
झरता है घर
हमारे मन में लोना लगे पलस्तर की तरह
जब कुछ बचा लेने में सफल हो जाते हैं हम
पूरी तरह बेघर होकर
घर का रास्ता भूल जाने के बाद

नीलाभ

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