डॉ. प्रवीण शुक्ल

आपकी सेवा में मेरी नई पुस्तक "क्या करेगी हवा" से कई शे'र हाजिर है

कभी-कभी की बात नहीं है मेरे सँग अक्सर चलता है।
घर से बाहर रहता हूँ तो मेरे भीतर घर चलता है ।।

बीबी-बच्चों को सँग लेकर जब-जब भी बाजार गया, तब
करके याद  धमाके मेरे भीतर-भीतर डर चलता है ।।

जब भी तन्हाई में मेरे सँग उसकी यादेंं रहती हैं ।
चाँद-सितारे आगे-पीछे, कदमों में अम्बर चलता है ।।

मानवता के लिए जिये जो गाँधी, गौतम, ईसा बनकर ।
उऩके संदेशों के पीछे इक पूरा लश्कर चलता है ।।

दौलत-शोहरत एक तरफ रख, जिसने यहाँ फकीरी जी ली ।
ऐसा फक्कड, मस्त-कलन्दर कब किससे डरकर चलता है ।।

अगर अदब में काम करोगे तुमको सदियाँ याद रखेंगी ।
बेअदबी से  सात पीढियाँ तक कब किसका जर चलता है ।।

मेरे मुँह पर जिसने मेरी तारीफों के पुल बाँधें हैं ।
जरा पीठ फिरते ही उसका पीछे से खंजर चलता है ।।

दौलत और ताकत के दम पर खुद को खुदा समझ बैठे जो
भूल गये वो, जर्रा-जर्रा "उसकी" मर्जी पर चलता है ।।


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