हितकारी वचन

अप्रियं हि हितं स्निग्धमस्निग्धमहितं प्रियम् ।
दुर्लभं तु प्रियहितं स्वादु पथ्यमिवौषधम् ।।

(सौन्दरानन्दम् ११/१६)



हितकारी अप्रिय वचन स्नेह से पूर्ण होता है तथा अहितकारी प्रिय वचन स्नेह से रहित होता है । प्रिय भी हो और हितकर भी हो, ऐसा वचन दुर्लभ है । जैसे औषधि स्वादिष्ट भी हो और रोग निवारक भी ।

योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

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