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उत्साह

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अनिर्वेदः श्रियो मूलमनिर्वेदः परं सुखम् । अनिर्वेदो हि सततं सर्वार्थेषु प्रवर्तकः ।। ( वा.रा.सु.का.७/३) उत्साह लक्ष्मी का मूल है, उत्साह ही परमसुख है, उत्साह ही हमेशा सही अर्थों का प्रवर्तक है । योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

हितकारी वचन

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अप्रियं हि हितं स्निग्धमस्निग्धमहितं प्रियम् । दुर्लभं तु प्रियहितं स्वादु पथ्यमिवौषधम् ।। ( सौन्दरानन्दम् ११/१६) हितकारी अप्रिय वचन स्नेह से पूर्ण होता है तथा अहितकारी प्रिय वचन स्नेह से रहित होता है । प्रिय भी हो और हितकर भी हो, ऐसा वचन दुर्लभ है । जैसे औषधि स्वादिष्ट भी हो और रोग निवारक भी । योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

सहोदर भ्राता

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देशे देशे कलत्राणि देशे देशे च बान्धवाः । तं तु देशं न पश्यामि यत्र भ्राता सहोदरः ।। ( वाल्मीकीय रामायण , युद्धकाण्ड ५६/१३) प्रत्येक देश में स्त्रियां व प्रत्येक देश में बंधु-बांधव मिल जाते हैं, लेकिन ऐसा देश नहीं दिखता, जहां सहोदर भाई प्राप्त हो जाएं । योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री

परिश्रम के विना कुछ नहीं

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!!!---: परिश्रम से जीवन की सार्थकता :---!!! ============================= संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ सभी कार्य परिश्रम से सफल हो जाते हैं, केवल मन में इच्छा करने मात्र से नहीं । क्योंकि कहा गया है, सोए हुए सिंह के मुख में कोई पशु प्रवेश नहीं करता । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री इस दुनिया में सब कुछ एकदम से नहीं मिल जाता । परिश्रम करना पड़ता है और वह भी लगन से! सूरज भी एकदम से नहीं उग जाता, वह भी धीरे धीरे उठकर संसार को प्रकाशित करता है। अगर आप में धैर्य है, साहस है तो आप जीवन में नयी ऊंचाइयों को छू सकते हैं। संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री श्रमेण लभ्यं सकलं न श्रमेण विना क्वचित् । सरलाङ्गुलिः संघर्षात् न निर्याति घनं घृतम् ॥ शरीर के द्वारा मनःपूर्वक किया गया कार्य परिश्रम कहलाता है । परिश्रम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है  परिश्रम के बिना न विद्या मिलती है और न धन। परिश्रम के बिना खाया गया भोजन भी स्वादहीन होता है। अतः हमे...

सुख-दुःख के लक्षण

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!!!---: मोदी का सूत्र : ---!!! ==≠================= नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में करोनाकाल में संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण किया था, " सर्वमात्मवशं सुखम्" आप लोगो को जानकारी न हो तो बता दूँ कि यह श्लोक मनुस्मृति (४/१६०) का है। नरेंद्र मोदी ने जो पढ़ा, वह श्लोक का एक चरण ही पढ़ा था, पूरा श्लोक इस तरह है :--- सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् । एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।  (मनुस्मृति ४/१६०) जो जितना परवश (दूसरे के अधीन) होना है, वह सब दु:ख और जितना स्वाधीन रहना है, वह सब सुख कहाता है । यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानो । स्वामी दयानंद का किया हुआ अर्थ :--- क्योंकि जो जो पराधीनता है, वह वह सब दुःख और जो जो स्वाधीनता है, वह वह सब सुख । यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानना चाहिए । ( सत्यार्थ प्रकाश ) मनुस्मृति का चौथा अध्याय मनुष्य द्वारा किये जाने वाले कर्म के बारे में है, जिसमें बताया है, मनुष्य को स्वाधीन कार्य करने चाहिए, जिससे सुख प्राप्त हो, भय, शंका, लज्जा आदि न हो। आत्मा को शांति मिले। आलस्य वृत्ति छोड़ देनी चाहिए । योगाचार्य डॉ. प...

संस्कृत भाषा

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सरस सुबोधा विश्‍वमनोज्ञा ललिता हृद्या रमणीया  अमृतवाणी संस्‍कृतभाषा नैव क्लिष्‍टा न च कठिना ।। कविकुलगुरु वाल्मीकि विरचिता रामायण रमणीय कथा  अतीवसरला मधुर मञ्जुला नैव क्ल्ष्टिा न च कठिना ।।  व्‍यास विरचिता गणेश लिखिता महाभारत पुण्‍य कथा  कौरव पाण्‍डव सागर मथिता नैव क्लिष्‍टा न च कठिना ।।  कुरुक्षेत्र समराङ्गणगीता विश्‍ववन्दिता भगवद्गीता   अतीव मधुरा कर्मदीपिका नैव क्लिष्‍टा न च कठिना ।।  कवि कुलगुरु नव रसोन्‍मेषजा ऋतु रघु कुमार कविता  विक्रम शाकुन्तल मालविका नैव क्लिष्‍टा न च कठिना ।।   '' गेय संस्‍कृतम् '' पुस्‍तकात् साभारं ग्रहीतम् योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री 

सन्मित्र के लक्षण

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!!!---: अच्छे मित्र के लक्षण :---!!! ======================{ " पापान्निवारयति योजयते हिताय गूह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति । आपद्गतं च न जहाति ददाति काले सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ।।" ( नीतिशतकम् ) भर्तृहरि ने अच्छे मित्र के ये छः लक्षण बताएं हैं । ये छः लक्षण जिसके अंदर होते हैं । वही सही अर्थों में मित्र कहलाने के योग्य है :--- जो पापों से बचाए, पाप कर्म करने से बचाए और अच्छे कर्मों में लगा दे । छिपाने योग्य बातों को छुपाए और हमारे गुणों को समूह में प्रकट करे । आपत्तियां आने पर कभी साथ ना छोड़े और समय आने पर भरपूर सहयोग करें । सामान्य रूप से संत लोग अच्छे मित्रों के यही लक्षण बताते हैं । योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

मानव निर्माण

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!!!---: मानव-निर्माण :---!!! ======================= मनुष्य और पशु में यही अंतर है कि मनुष्य धर्म कर सकता है, मनुष्य के अंदर मानवता हो सकती है और दूसरों पर कृपा कर सकता है, दया कर सकता है, परोपकार कर सकता है । यह काम पशु नहीं कर सकता । इसलिए मनुष्य की मनुष्यता है । " आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।  धर्मो हि तेषामधिको विशेषो  धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥" आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये चार चीजें पशु और मनुष्य में सामान्य है, किंतु उनमें धर्म ही विशेष है । धर्म से हीन व्यक्ति पशु के समान होता है । मनुष्य अच्छे कर्म करके परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है । " पुरुषो वै प्रजापतेर्नेदिष्ठम्" ( शतपथ ) प्राणियों में से मनुष्य परमेश्वर के सबसे अधिक निकट है अन्य कोई प्राणी परमेश्वर की इतनी निकटता को प्राप्त किए हुए नहीं है, जितनी कि मनुष्य । यदि मानव अपनी मानवता को पहचानता रहे थे तो वह मनुष्य है, अन्यथा उसमें पशुत्व भरकर उसे पशु बना देता है :--- " खादते मोदते नित्यं शुनकः शुकरः खरः । तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु तादृशी ।।...

विद्वान् पुत्र

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माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठितः । न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ।। वह माता अपनी संतान के लिए शत्रु है और पिता बैरी है, जिसने अपने बालक को नहीं पढ़ाया । वह बालक विद्वानों की सभा में उसी प्रकार से सुशोभित नहीं होता, जिस प्रकार से हंसों के बीच में बगुला सुशोभित नहीं होता । " पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सन्ततं बुधैः। नीतिज्ञा शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः।।" बुद्धिमान् व्यक्ति अपने बच्चों को विभिन्न प्रकार के चरित्र के कामों में लगने की प्रेरणा देते हैं क्यों श्रद्धावान, चरित्रवान तथा नीतिज्ञ पुरुष ही विश्व में पूजे जाते हैं। ( अर्थशास्त्रम् चाणक्य कृत) योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

गरीबी अपमानजनक है

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गरीबी अपमानजनक है =============== "दौर्गत्यं देहिनां दुःखमपमानकरं वरम् । येन स्वैरपि मन्यन्ते जीवन्तोऽपि मृता इव ।।" (पञ्चतन्त्रम्, मित्रसम्प्राप्तिः १०३) दरिद्रता (गरीबी) मनुष्य के लिए सबसे अपमानजनक तथा दुःखद वस्तु होती है । दरिद्रता के कारण ही अपने सगे संबंधी जन मनुष्य के जीवित रहने पर भी उसको मृत के ही समान समझते हैं । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री